''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
अभी इतने भी प्रागैतिहासिक मत बनो यारो की कल के बलिदानों को ही भूल जाओ ......
अभी इतने भी प्रागैतिहासिक मत बनो यारो की कल के बलिदानों को ही भूल जाओ ,अरे काम से काम उन्हें तो याद कर लो जिनके कारण आज तुम खुले असमान के नीचे खेल रहे हो !!!!!!!!!!!!!!!!!
....बैलेंटियन दिवस ,मैत्री दिवस य और कोई ऐसा ही दिन होता है तो भारत के महान निवासी एक-दुसरे को बढ़िया देने में जुट जाते ,वो भी एक-दो दिन पहले नहीं बल्कि पंद्रह बीस दिन पहले से !जी हा यही कार्यकलाप है हमारा !!!!!!!
हम बात कर रहे है हमारे स्वतंत्र भारत की वर्षगांठ की जिसके मात्र ५-६ दिन शेष है उसकी किसी को चिंता नहीं है ,लोग सोचते है आने दो उस दिन झंडा लहरा लेगे ,लोगो से पुराना इतिहास सुन लेगे,लालकिला पर प्रधानमंत्री का भाषण सुन लेगे बस हो गया १५ अगस्त लेकिन हमारी महान हस्तियों जरा ये भी तो सोचो की इस १५ - अगस्त को मानाने के लिए हमें कितनी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी है क्या यही कठिनाइया आपके बैलेंतियन दिवस य मैत्री दिवस को मानाने के लिए झेलनी पड़ी है ,मई बताता हु जी नहीं !!! इन सब दिवसों के कारणों पर जायेगे तो पता चलेगा की कोई दिवस इस्सलिये मनाया जाता है की इसनइ इसको शादी के लिए आमंत्रित किया था ,जैसा की आज भी करते है !!
किसी दुसरे दिवस पर जायेगे तो पता चलेगा की वो इस दिन समुद्र में कूड़ा था ,जैसा आज भी होता है ,, रहा होगा कोई कारन.........
किसी अगले पर जाते है तो पता चलेगा की इस दिन उसका लड़का पैदा हुआ था जैसा की आज भी होता है !!
तो फिर आज क्यों नहीं सुरु कर देते इन दिनों को धूम धाम से मानना ....
मनाओ हम ये भी नहीं कहते है की अप इन्हें बिलकुल ही मत मनाओ बल्कि हम तो यह कह रहे है की अरे जिसे मानाने के लिए हमने 350 साल लड़ाई लड़ी है पहले उसे याद करो ...अरे ये दिन न होता तो जो अप आज मन रहे हो न वो सब धरा का धरा रह जाता ..
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2 टिप्पणियां:
अंकुर जी आलेख बहुत ही बढिया व सामयिक है...बधाई स्वीकारें।
एक कड़वी सच्चाई है कि आज हम उन्हें बिसराते जा रहे है जिन्हो के कारण हमें यह दिन देखने को मिला है..
आपकी चिंता जायज़ है...
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