क्या तुम्हे माँ याद नहीं आई,
जो तुमने इन बच्चो पर गोली चलाई,
एक माँ तुम्हारी भी तो होगी,
जो रोने पर खुद रो पड़ती थी
आंसुओ को तुम्हारे खुद पोछते पोछते,
और न जाने कितने दर्द छिपाती
बिना कुछ बताये बिना कुछ चिल्लाये,
उस माँ के बच्चो पर तुमने गोली चलाई
क्या तुम्हे माँ याद नहीं आई...
खुद तुम्हे पढ़ाती रही, बढ़ाती रही
अपने पैबंद बार बार गवांती रही,
न जाने किस मिट्टी से बनी थी वो
जो हर दर्द में साथ रही और मुस्कुराती रही
तुम्हारी भी तो ऐसी ही माँ थी न
क्या तुम्हे उस माँ की जरा सी भी याद नहीं आई...
जो जरा से देर से तुम्हारे घर
लौटने में घबरा जाती थी
तुमने उसके बच्चो को घर लौटने ही नहीं दिया...
पैर की जरा सी चोट के खून से
वो माँ सहम जाती थी
उस माँ को तुमने खून से लथपथ बच्चे भेज दिए...
खुद भूखी रहकर
आखिरी रोटी भी खिला देती दी जो तुम्हे
उस माँ के भूखे बच्चे तुमने मार डाले...
तुम्हारी उंगली को बनाया,
फिर उस उंगली को पकड़कर चलना सिखाया
आज उस माँ को तुमने कटा हुआ अगूंठा दिखा दिया...
क्या तुम्हे उस माँ की जरा सी भी याद नहीं आई
जब भी तुमने गोली चलाई
क्या तुम्हे माँ याद नहीं आई..
जो तुमने इन बच्चो पर गोली चलाई,
एक माँ तुम्हारी भी तो होगी,
जो रोने पर खुद रो पड़ती थी
आंसुओ को तुम्हारे खुद पोछते पोछते,
और न जाने कितने दर्द छिपाती
बिना कुछ बताये बिना कुछ चिल्लाये,
उस माँ के बच्चो पर तुमने गोली चलाई
क्या तुम्हे माँ याद नहीं आई...
खुद तुम्हे पढ़ाती रही, बढ़ाती रही
अपने पैबंद बार बार गवांती रही,
न जाने किस मिट्टी से बनी थी वो
जो हर दर्द में साथ रही और मुस्कुराती रही
तुम्हारी भी तो ऐसी ही माँ थी न
क्या तुम्हे उस माँ की जरा सी भी याद नहीं आई...
जो जरा से देर से तुम्हारे घर
लौटने में घबरा जाती थी
तुमने उसके बच्चो को घर लौटने ही नहीं दिया...
पैर की जरा सी चोट के खून से
वो माँ सहम जाती थी
उस माँ को तुमने खून से लथपथ बच्चे भेज दिए...
खुद भूखी रहकर
आखिरी रोटी भी खिला देती दी जो तुम्हे
उस माँ के भूखे बच्चे तुमने मार डाले...
तुम्हारी उंगली को बनाया,
फिर उस उंगली को पकड़कर चलना सिखाया
आज उस माँ को तुमने कटा हुआ अगूंठा दिखा दिया...
क्या तुम्हे उस माँ की जरा सी भी याद नहीं आई
जब भी तुमने गोली चलाई
क्या तुम्हे माँ याद नहीं आई..