देश में परिवर्तन के लिए हमेशा से लोकतान्त्रिक परिवर्तन की जरूरत रही है, वैसे तो आज की राजनीति को देखते हुए देश में लोकतंत्र है , ऐसा सोचना भी गुनाह है ! देश को बुरी तरह से तानाशाही सरकार ने जकड़ रखा है, और वो भी ऐसे दल ने जिसे देश की आजादी में प्रमुख सहायक माना जाता रहा है ! जिसके जवाहर लाल नेहरू जैसे नेताओ की वास्तविकता को नकारते हुए लोग आदर्श मनते है, जिस दल ने ५० से ज्यादा सालो तक आजाद देश में शासन किया हो और देश की हालत उस मझधार तक न पहुच पाए जहां के लिए वो वांछनीय हो ऐसी सरकार को क्या कहेंगे ??
कहने को तो इस दल में विद्वानों का भंडार है लेकिन उनकी विद्वता का इस्तेमाल आखिर किस देश के लिए होता है ? देश की वर्तमान समस्याओ को बताने की जरुरत नहीं है एक साधारण आदमी भी प्रत्येक समस्या से अवगत है ! जरुरत है निवारण की और निवारणकर्ता की !
ऐसी समस्याओ को देखते हुए हुए देश के राजनैतिक गलियारे में एक नए दल का आवरण, हो सकता है देश को एक नई उर्जा प्रदान करने में सहायक हो सके ! अरविन्द केजरीवाल जिस व्यक्ति को आज किसी पहचान की जरुरत नहीं है !
देश में समाज सेवक से राजनेता की ओर मुडने वाले इस व्यक्ति ने पिछले एक साल में समाज सेवक अन्ना हजारे के साथ जन जागरण का जो कार्य किया है वो वास्तव में सराहनीय रहा है ! अब उनके इस राजनैतिक दल को जनता का कैसा नजरिया मिलता है यह देखने लायक होगा !
वैसे आज की नजर से देखा जाये तो देश की बिगड़ती समस्या के निवारण के लिए हमेशा किसी न किसी नए दल ने ही परिवर्तन किया है और आज के राजनैनिक दलों और राजनेताओ को देखते हुए फिर से एक बदलाव की जरुरत देश को है ! पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने कर्तव्य भूल चुके है ! दोनों का यह नजारा हिया दिन में संसद के अंदर कुर्सिय फेंकते है और रात में एक् साथ भोजन करते है , आखिर इसका मतलब क्या निकला जाये ?? क्या जनता इन पार्टियों के लिए ‘नौकर’ है !!
जिस सरकार को आम जनता ने चुनकर वहाँ तक पहुछाया है जो देश के लिए नौकर है वो आज अपना पद भूलकर आम जनता को नौकर समझ रहे है ! जाब कभी भी मनुष्य अपना कर्तव्य भूलकर मालिक बनाने की गलती करता है तब-तब उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है ! अब बारी है इन तानाशाओ की ! अभी तक देश में कमी थी विकल्प की लेकिन आज देश को केजरीवाल ऐसा विकल्प दे सकते है जो इस भ्रष्टता को समाप्त करने में सहायक हो सकता है !
आज यहाँ भी अनेक सवाल खड़े हो रहे है , आखिर इन पर विश्वास क्यों करे ?
इसके लिए एक् सीधा सा जबाब है : एक् बार आप जातिवाद , क्षेत्रवाद और सभी प्रकार के वादों को छोड़कर विकास के बारे में दिल से न सोचकर दिमाग से सोचो आपका दिल भी आपको इसी विकल्प की ओर इसारा करेंगे ! और ऐसा करने के बाद उन आलोचकों को भी जबाब दे सकते है !
ऐसा लगता है दिल्ली गलियों से ये आवाजे भी आती है ,जिन्हें भैसे चराना था वो सरकारे चलते है
''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
गडकरी को भाजपा से नही भारत से निकालना चाहिए : अंकुर मिश्र 'युगल"
कभी विकास के लिए प्रसिध्धि पाने वाले महान राजनेता अटल बिहारी बाजपेई जैसे प्रधानमंत्री देने वाले राजनैतिक दल भाजपा की आज की राजनैतिक दशा इस तरह दयनीय हो सकती है , ऐसा शायद ही किसी ने सोचा हो ! जिस राजनेता को राजनीती की परिभाषा माना जाता है, जिसने अपने कार्यकाल में विकास के इतिहास रचे उस महानेता की पार्टी की इस दयनीय दशा का जिम्मेदार आखिर कौन है ??
इस प्रश्न का उत्तर किससे पूंछे, जनता से भाजपा के आलाकमान से या फिर खुद बाजपेई जी से ??
और वास्तविकता की नजर से देखे तो जनता और बाजपेयी जी से इस प्रश्न का उत्तर पूंछना भी मूर्खता होगी अंततः उत्तर की जिम्मेदारी आती है आज के भाजपा के नेताओ से, लेकिन क्या उनके पास किसी तरह का उत्तर हो सकता है ?? अब भी ये एक बड़ा प्रश्न है ??
इस राजनैतिक दल में महान नेताओ की कमी नहीं है, लेकिन किसी महान विचारक के कथन है : “किसी भी अच्छे और बड़े कार्य के लिए सञ्चालन का अच्छा होना अत्यंत आवश्यक है !”
लेकिन क्या गडकरी और अडवाणी जैसे राजनेता भाजपा को सही सञ्चालन दे रहे है ?? जिस व्यक्तित्व के अंदर खुद के बोलने में नियंत्रण न हो , क्या वो किसी दल का नियंत्रण कर सकता है ! स्वामी विवेकानंद जैसे महपुरुष की तुलना आज के आतंकवादी दाउद से करना मूर्खता कहलायेगा या पागलपन ! जिस महापुरुष ने अपना जीवन देश सेवा के न्योछावर कर दिया उसकी बौद्धिक क्षमता की तुलना किसी भी देशद्रोही से करना खुद को देशद्रोही ही दिखाता है, और वो भी ऐसे राजनैतिक दल द्वारा जो आपकी ज्म्मेदारियो के लिए जाना जाता है !
गडकरी की इस मूर्खता या पागलपन से आतंक फ़ैलाने वाले समूहों को सकारात्मक सोच मिलेगी और देश में आतंक का शय बढ़ सकता है ! ऐसे वक्तव्यों के लिए गडकरी को देशद्रोही कहना अनुचित नहीं होगा ! उन्होंने इस कथन को क्यों कहा , क्या वो अभी तक अरविन्द केजरीवाल द्वारा लगाये गए आरोपों से नहीं उबरे या फिर उन्हें खुद के भाजपा संचालक होने का घमंड है?
कारण कुछ भी हो देश को ऐसे वक्तव्य एक गलत छवि देते है , और इस तरह के कारणों को देखते हुए उन्हें अपने सञ्चालन को छोड़कर देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, जिस देश में भ्रष्टाचार के लिए आवाज उठाने वाले असीम त्रिवेदी जैसे व्यक्ति को जेल में डाला जा सकता है तो क्या आतंकवादियो की तुलना राष्ट्रपुरुष से करने वाले को खुले आसमान के नीचे घूमने देना खतरा नहीं दे सकता ! देश के अंदर भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की आजादी नहीं है , उसके लिए जेल के दरवाजे तुरात्त खोल दिए जाते है तो क्या आतंकवाद फ़ैलाने के लए आजादी हों चाहिए ! यह प्रश्न जनता के लिए है और जनता को यह तय करना है की आखिर देख को कौन चलाएगा, आतंक को सह देने वाला एक व्यक्ति या कोई और !!
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