''सत्य और साहित्य'' : 'अंकुर मिश्रा' की हिंदी रचानाएँ (कहानियाँ और कवितायेँ )
आज देश का प्रत्येक नागरिक मौका मिलने पर अपनी "भ्रष्टता" दिखने में माहिर है !!!!
अरे कब तक सुनेगे अपनों से ही की हमारा देश भ्रष्ट है ,हमारे neta भ्रष्ट है ,हमारा प्रशाशन भ्रष्ट है !, और यदि हैं भी तो बता किससे रहे हो उन्ही से जो इस कड़ी का एक हिस्सा है !आज यही तो समस्या है की खुद ने खुद को सोचने पर बिवस कर दिया है,देश के लोकतंत्र,प्रजातंत्र यहाँ तक की एक सामान्य मनुष्य ने भी इस जीवाणु से अपने अप को नहीं बचा पाया है!अरे हम विश्व में किस मामले में पीछे है १३० करोण लोग हमारे पास है जो विश्व की लगभग १७% जनसँख्या है ,हमारे पास सभी कच्चे पदार्थ प्राप्त होते है ,हम खनिजो से परिपूर्ण है ,हम प्राचीनतम विश्वगुरु है ,हम प्राचीनतम धनाड्य है फिर भी हम खुद से खुद में ऐसे जीवाणु को फैला रहे है जो देश के विनाश का मार्ग है ,और वास्तविकता पर ध्यान दे तो आज देश का हर नागरिक ,हर बच्चा मौका मिलने पर इस जीवाणु से हाथ जरुर मिलाता है !
सोचिये भ्रष्टाचार न होता तो "कला धन" जैसे शब्द आपको सुनाने को भी नहीं मिलता !अरे अप इस कड़ी से जुड़ते क्यों है अपने कार्य को जल्दी और सामान्य ढंग से बनाने के लिए , अप यही कार्य नियम-कानूनों के दायरे में रहकर करिए फिर देखिये आपको कितने लाभ प्राप्त होते है आपका धन बचेगा,आपका समय बचेगा ,आपकी प्रतिष्ठा बनेगी,आप विक्सित भारत को बनाने में अपना सहयोग देगे !!!!
अरे आप सुरुआत तो करिए सकारात्मक परिणाम आपको नजर आने लगेगें ! और जिस दिन इस ऐतिहासिक काम की सुरुआत हो गई उस दिन से ट्राफिक में खड़े हवलदार से लेकर देश को चलाने वाली बड़ी से बड़ी शख्शियत में इतनी ताकत नहीं होगी की वो "भ्रष्टता"के गलियारे घुसने की कोसिस कर सके!! और आज के भारत को देखते हुए हमें पूरा विश्वास है की वो दिन जल्द ही हमारी आँखों के सामने होगा ,क्योकि आज की युवा पीढ़ी में देश के उत्थान का स्वप्न साफ झलक रहा है!!!!!!!!!!
जनता मात्र वोट बनकर रह गई है आज की राजनीती में- अंकुर मिश्र"युगल"
एक विचार आपके विचार के लिए......
जी हा अब फिर एक तातीजा आ रहा है हमारे लिए "अयोध्या का फैसला" !अरे आज हम हिन्दू- मुसलमान एक दुसरे के इतने दुश्मन नहीं है जितनी हमारी सरकार हमें बनाती जा रही है! यदि वर्तमान की गतिविधियों को देखे तो सब शांति से चल रहा है कोई किसी परेशानी में नहीं है सिवाय महगाई के,वो भी हम हँसते हँसते झेल रहे है ,लेकिन अयोध्या मामले का फैसले की खबर से पुनः अशांति फ़ैलाने जो की कोशिश हमारी सरकार कर रही है वह वास्तव में "आज की भारतीय राजनीती" पर सोचने के लिए विवश करती है ! वो भी दशको से पड़े इस मामले का परिणाम तब देगे जब "हमारे स्वर्ग जैसे कश्मीर में परेशानिया छायी हुई है ", "कुछ ही समय बाद हम राष्ट्रमंडल खेलो का आयोजन करने जा रहे है ",क्या हमारी सरकार य न्यायलय को और कोई समय नहीं मिला था जिसमे इस परिणाम की तिथि घोषित कर सके ,अरे हम यही सोच लेगे की हमारा मंदिर या मस्जिद थोड़ी विलंभ बना ! पर विश्व में हमारी छवि तो बनी रहेगी हम खेल तो शांति पूर्वक निपटा सकेगे! हाँ यहाँ दूसरा ध्यान देने वाला बिंदु यह है की आखिर अयोध्या में सेना को लगाकर सरकार दिखाना क्या चाहती है,देश की सेना विदेशियों से सुरक्षा के लिए है या आपस में लड़ने के लिए !और हाँ देश के अन्दर हमें सुरक्षा की आवश्यकता खुद के लिए नहीं अपितु उनके लिए है जो हमारे यहाँ अपनी प्रतिभाओ का प्रदर्शन करने आ रहे है !!
यह तो केवेल एक बिंदु था जहा यह सिध्ध होता है हमारी सरकार हमारे साथ जब चाहे अपने वोटो का कोटा बढ़ने के लिए कुछ भी कर सकती है जो पूर्ण रुपें दृशनीय है !
आप किसी भी सरकारी क्रियाकलाप से ये देख सकते है की हम केवल वोट के लिए प्रयोग किये जा रहे है,वो चाहे नेताओ के चुनाव से पहले विकासक के वादे हो या फिर चुनाव के बाद की नेतागिरी !
अरे आप खुद सोचिये की.....
>> क्या वो धन वापस आया है जिसके लिए चुनाव से पहले वादा किया गया था (मेरा मतलब कला धन) !
>>क्या दशको से पड़े उन गरीबो का कुछ हुआ जो चुनाव में हमेशा भाग लेते है(उनका विकाश)!!
>>क्या उन नेताओ का कुछ हुआ जो हमारी माँ, बहनों को सताकर परिवार जानो को लूटकर मंत्रिमंडल में पहुछे है और जिनको कभी मंत्री पद न देने की बात कही गई थी!!!
>>अरे उनके लिए भी सोचिये जो अपनी जन को हमेश अपनी हंथेली पर लिए रहते है वो भी इस लिए की हमरे राजनेताओ,उद्योगपतियों को कुछ न हो, अरे उनके परिवार जानो के बारे में तो सोछो हमारे आकाओ!!!!
>>राजनीती की परिभाषा को यद् करो ,हाँ सब जानते है की किसी साम्राज्य के लिए महत्व पूर्ण इकाई है ,पर यद् करिए उसमे यह भी है यही वो शब्द है जो दो विभिन्न साम्राज्यों को संगठित करता है न की अपश में लड़ता है !!!!
इत्यादि हमें ऐसे अनेक बिंदु मिल जायेगे जो हमारी राजनीती को गर्त में पहुछा रहे है !
आप सोचेगे की इन बिन्दुओ को तो सब जानते है , हाँ सत्य भी है पर आप एक बार गंभीरता से विचार करिए आपको कुछ नकुछ कमी जरुर नजर आयेगी!
आशा है आप इस विचार पर विचार जरुर करेगे...
"घोर कलयुग का सामना करती राष्ट्रभाषा के विचार"..
आज मै इस तरह से अपने ही घर में लज्जित हो रही हो की किसी के सामने अपने दर्द का व्याख्यान भी नहीं कर सकती !पहले तो मुझे इस बात का कष्ट रहता था की आतंकवाद, नक्सलवाद अदि मेरी माता को लगातार कष्ट दे रहे है, लेकिन उस दर्द का एहसास मुझे नहीं होता था ! अज जब लोग मुझे ही मारने लगे तो मुझे लगा की देश पर आज वास्तविक खतरा मधरा रहा है !और उस कष्ट की अनुभूति हुई जो मेरी मातृभूमि सदियों से सह रही थी ! जब श्री अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मेरे दर्शन सम्पूर्ण विश्व को कराये थे तो मुझे लग रहा था की मै भी अब इस सखा की सदस्य बन जाउगी !
लेकिन आज की इस व्यस्ततम दुनिया में मुझे नहीं लगता की मेरा वह सपना कोई पूरा कर पायेगा !जो करने वाला था वो असमर्थ हो गया है और जिसको सौपा गया था उसने मेरा विनाश करने की ठान रखी है! मुझे आज मेरी जन्मभूमि में ही कोई सरन देने वाला नहीं है कोई नहीं है जो मेरी दुःख भरी किलकारियों को कोई सुन सके !सब के सब मुझे कष्ट देने में लगे है.....................................................
आखिर इनकी क्या इच्छाए है जो ये मेरी बलि चढा कर पाना चाहते है !यदि ये मेरी वजह से कष्ट में है तो मुझसे कह दे तो मै अपने भाइयो,माताओ, गुरुओ,और देश्वशियो के लिए अपना भी बलिदान कर दुगीं ! lekin मुझे ऐसा भारत चाहिए जो विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र हो जिश्मे तनिक भी बधाये न हो !
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"घोर कलयुग का सामना करती राष्ट्रभाषा के विचार"
प्रस्तुतकर्ता-- अंकुर मिश्र ''युगल''
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