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तोड़ मोह के पाशों को,
भर लो वक्ष स्थल में आग |
अब समय नहीं है सोने का ,
राम पुत्र तू जाग जाग ||
बन पांचाली का क्रोध महा ,
बन जा तू ज्वाला प्रचंड |
अरिदल रण को छोड़ भगे ,
हो जाये उनका मान खंड ||
चारो दिशाएं गूंज उठे ,
ऐसा हो तेरा युद्ध राग |
अब समय नहीं है सोने का ,
राम पुत्र तू जाग जाग ||
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2 टिप्पणियां:
bhai ji aap ki is baat pr hr bhartiy ke khoon me ubaal aana swabhawik hai.
बहुत बढ़िया कविता है।बहुत बहुत बधाई।ऐसे ही लिखते रहे...शुभकामनाएं।
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