ओ किसान भगवान................


यह कविता मेरे पूज्यनीय बाबा
*****(श्री श्री धर मिश्र , तहसीलदार )******
द्वारा लिखित है जो आज इस दुनिया में नहीं है,
उनकी पुस्तक ****''मेरा संग्रह''**** में महान कविताओ का संग्रह है!
चूँकि वो एक राजस्व विभाग के अधिकारी थे अतः उन्होंने किसानो एवं जनता का कास्ट नजदीक से देखा है !
इस कविता में उन्होंने किसानो की दशा का वर्णन किया है.


ओ किसान भगवान ....ओ किसान भगवान.....
जगत के प्राण,
की भूत के प्राण,
किन्तु हा सुना हुआ जग विधान,
तुम्ही से निर्मित जग नादान,
पल्लवित करने वाला आप(water),
की पुश्पिर करने वाला ताप(Temp)
आज देखा जाता बल-हीन,
ओज से रहित,
रोग से ग्रसित,
वही मधुमास,
वही रसराज,
भरा था सौरभ का भंडार,
बड़ी मतवाली मस्ती से जिसकी,
लहराती हस्ती से जिसकी,
छोटी से छोटी गलियों ने,
बेशुध, भूली सी कलियों ने,
हर दल दल हर पट पट ने,
मानव के अप्रताप ताप ने,
पाया था संयोग ,विरह का-,
किन्तु वही मधुमास
की जिसके पीछे था पतझड़,
की जिसका अनुचर रहता नाश,
आज तांडव सा करता नृत्य,
बना मालिक बैठा है मृत्य,
आज क्यों शक्तिहीन बलवान,
ओ किसान भगवान ....ओ किसान भगवान.....

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आज सही मे किसानों की हालत बद से बदरत होती जा रही है..छोटे किसान का तो बहुत बुरा हाल हो चुका है।


आपने बहुत सुन्दर और सामयिक रचना प्रेषित की है आभार।

संतोष कुमार "प्यासा" ने कहा…

bachcha guru
dew
maan gae ab to tu lekhk se kawi bhi ban gae